दिगंत भाग 2

गद्य-7 | ओ सदानीरा (सारांश) – जगदीशचंद्र माथुर | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

विवरण

O Sadanira Saransh

आधारित पैटर्नबिहार बोर्ड, पटना
कक्षा12 वीं
संकायकला (I.A.), वाणिज्य (I.Com) & विज्ञान (I.Sc)
विषयहिन्दी (100 Marks)
किताबदिगंत भाग 2
प्रकारसारांश
अध्यायगद्य-7 | ओ सदानीरा – जगदीशचंद्र माथुर
कीमतनि: शुल्क
लिखने का माध्यमहिन्दी
उपलब्धNRB HINDI ऐप पर उपलब्ध
श्रेय (साभार)रीतिका
गद्य-7 | ओ सदानीरा (सारांश) – जगदीशचंद्र माथुर | कक्षा-12 वीं

सारांश

O Sadanira Saransh

“ओ सदानीरा” निबंध “जगदीशचंद्र माथुर जी” द्वारा लिखी गई है। यह निबंध, उनके निबंध पुस्तिका “बोलते क्षण” से संकलित है। यह निबंध व्यक्ति, भाव और वस्तु प्रधान है। यह निबंध गंडक नदी को केंद्र बनाकर, संपूर्ण ऐतिहासिक जगहों के बारे में तथा महात्मा गांधी तथा उनके साथियों द्वारा किए गए योगदानों के बारे में लिखा गया है। इस निबंध में चंपारण के सभी जगहों के बारे में बताया गया

ऐसा लगता है कि, हम पूरा चंपारण इस निबंध द्वारा घूम रहे हैं।

इस निबंध में लेखक बताते हैं कि, बिहार के उत्तर पश्चिम कोणे में चंपारण क्षेत्र की भूमि पुरानी भी है और नवीन भी। लेखक ने गंडक नदी को उन्मत्तयौवना वीरांगना की भांति प्रचन नर्तक करने वाली बताया है। वे कहते हैं कि, सन् बासठ की बाढ़ का दृश्य जिन्होंने देखा उन्हें “रामचरित्रमानस” में कैकेयी के क्रोधरूपी नदी की बाढ़ की याद आ गई होगी। इस निबंध में गंडक नदी की महानता चंचलता, उस के शौर्य तथा संपूर्ण इतिहास के बारे में बताया गया है। गंडक नदी के चंचलता के कारण यहाॅं गहरे ताल और विशाल मन है।

12 वीं सदी में कर्णाट वंश का राज्य था। कर्णाट वंश के राजा “हरिसिंहदेव” को 1325 ई० में मुसलमान आक्रमणकारी “गयासुद्दीन तुगलक” का मुकाबला करना पड़ा। जंगल के कटने पर रास्ता खुल गया और हरिसिंहदेव का गढ़ अपना घोंसला खो बैठा और उन्हें नेपाल भागना पड़ा।

O Sadanira Saransh

अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों तथा यहाॅं के निवासियों पर किए गए अत्याचारों के बारे में बताया गया है। इस निबंध में अनेक जातियों के सभ्यताओं का भी उल्लेख है। इसमें गांधी जी द्वारा चलाए गए आंदोलनों तथा किसानों के साथ मिलकर नील की खेती के विरुद्ध किए गए आंदोलन का भी उल्लेख है। गांधी जी ने बच्चों को पढ़ने के लिए तीन जगह विद्यालय बनवाए बड़हरवा , मधुबन और भितिहारवा। जिसके कार्यभार संभालने के लिए कुछ लोगों को भी नियोजित किया । O Sadanira Saransh

लौरिया के दक्षिण में अरेराज, अरेराज के दक्षिण में केसरिया और फिर वैशाली। यही वह पथ था जिससे भगवान बुद्ध अपनी अंतिम यात्रा पर गए थे। अपनी परम प्रिय नगरी, गणतंत्री लिच्छवियों की राजधानी वैशाली में अंतिम दर्शन के लिए भगवान बुद्ध ने अपने समस्त शरीर को गजराज की तरह घुमाया और बोले, “आनंद, तथागत का यह अंतिम दर्शन है।”

गंडक नदी के किनारे कई बौद्ध स्थल है, कुशीनगर, लौरिया, नंदनगढ़, अरेराज, केसरिया, चानकीगढ़ और वैशाली। इस निबंध में पश्चिम चंपारण के सरिया मन झील के बारे में भी उल्लेख है। इस झील के किनारे जामुन के पेड़ हैं और इसका पानी शुद्ध साफ और स्वच्छ है। इसका इस्तेमाल दवाइयां बनाने के लिए किया जाता था। इसमें लौरिया के गढ़ और अशोक स्तंभ का भी उल्लेख है। गंडक नदी को कई नामों से जाना जाता है, सदानीरा, चकरा, नारायणी, महागंडक इत्यादि।


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