दिगंत भाग 2

पद्य-7 | पुत्र वियोग भावार्थ (सारांश) – सुभद्रा कुमारी चौहान | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

विवरण

putra viyog bhavarth

आधारित पैटर्नबिहार बोर्ड, पटना
कक्षा12 वीं
संकायकला (I.A.), वाणिज्य (I.Com) & विज्ञान (I.Sc)
विषयहिन्दी (100 Marks)
किताबदिगंत भाग 2
प्रकारभावार्थ (सारांश)
अध्यायपद्य-7 | पुत्र वियोग – सुभद्रा कुमारी चौहान
कीमतनि: शुल्क
लिखने का माध्यमहिन्दी
उपलब्धNRB HINDI ऐप पर उपलब्ध
श्रेय (साभार)रीतिका
पद्य-7 | पुत्र वियोग भावार्थ (सारांश) – सुभद्रा कुमारी चौहान | कक्षा-12 वीं

पुत्र वियोग

putra viyog bhavarth

आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास विश्व पर छाया,
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, आज चारों दिशाओ मे, पूरे विश्व मे, खुशी है, उल्लास है। लेकिन मेरा खोया हुआ खिलौना, मेरा बेटा अभी तक मेरे पास नहीं आया है।


शीत न लग जाए, इस भय से
नहीं गोद से जिसे उतारा
छोड़ काम दौड़ कर आई
‘माँ’ कहकर जिस समय पुकारा।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, मेरे बेटे को ठंड नहीं लग जाए इस डर से मैंने कभी उसे आपने गोद से नहीं उतार। उसने जब भी मुझे माँ कह के पुकार, मैं उसी समय अपने सभी काम को छोड़ उसके पास गई हूँ। 


थपकी दे दे जिसे सुलाया
जिसके लिए लोरियाँ गाईं,
जिसके मुख पर जरा मलिनता
देख आँख में रात बिताई ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, जिस बेटे को थपकी दे दे कर सुलाया, जिसके लिए लोरियाँ गाई, जिस बेटे की थोरी सी देख मैं रात भर सो नहीं पाई।


जिसके लिए भूल अपनापन
पत्थर को भी देव बनाया
कहीं नारियल, दूध, बताशे
कहीं चढ़ाकर शीश नवाया ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, जिस बेटे के लिए अपनी सभी खुशियों को भूल गई। एक पत्थर को भगवान मानकर नारियल, दूध, बताशे और भी बहुत से चढ़ावा चढ़ाया है। बहुत से देवी देवताओ के आगे अपना शीश नवाया है। 


फिर भी कोई कुछ न कर सका
छिन ही गया खिलौना मेरा
मैं असहाय विवश बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, किसी ने भी मेरी सहायता नहीं की मेरा बेटा मुझसे छिन गया। मैं कुछ नहीं कर पाई विवश ही बैठी रही और मेरा बच्चा मुझसे दूर चला गया।


तड़प रहे हैं विकल प्राण ये
मुझको पल भर शांति नहीं है
वह खोया धन पा न सकूँगी
इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, मेरा हृदय तड़प रहा है, मुझको एक पल की भी शांति नहीं है। मुझे कुछ भी नहीं भाता मैं अपने खोया हुआ धन, अपना बच्चे को नहीं पा सकती हूँ।  


फिर भी रोता ही रहता है
नहीं मानता है मन मेरा
बड़ा जटिल नीरस लगता है
सूना सूना जीवन मेरा ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, मेरा मन नहीं मानता है। मुझे मेरा जीवन सुना और नीरस लगता है, मेरा मन अपने बच्चे के लिए रोता ही रहता है।  putra viyog bhavarth


यह लगता है एक बार यदि
पल भर को उसको पा जाती
जी से लगा प्यार से सर
सहला सहला उसको समझाती ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, मेरा मन करता है, एक बार यदि मैं अपने बेटे को गले से लगा पाती। तो उसको प्यार से उसके सर को सहलाकर उसको समझाती।


मेरे भैया मेरे बेटे अब
माँ को यो छोड़ न जाना
बड़ा कठिन है बेटा खोकर
माँ को अपना मन समझाना ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है। यह मुकुल काव्य से संकलित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, मेरे बेटे अब अपनी माँ को छोड़कर नहीं जाना। एक माँ के लिए बहुत कठिन होता है अपने बच्चे को खोकर अपने मन को समझाना।


भाई-बहिन भूल सकते हैं
पिता भले ही तुम्हें भुलावे
किंतु रात-दिन की साथिन माँ
कैसे अपना मन समझावे !

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के पुत्र वियोग कविता से ली गई है यह मुकुल काव्य से संकलित है इन पंक्तियों के द्वारा कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कहते हैं कि, तुम्हारे भाई-बहन तुम्हें भूल सकते हैं, तुम्हारे पिता तुम्हें भूला सकते हैं लेकिन जो माँ तुम्हें नव महीने अपने गर्भ में पाली है, जो रात दिन तुम्हारे साथ रहती है, वह अपने मन को कैसे समझाए कि उसका बेटा मर चुका है। putra viyog bhavarth


सारांश

व्याख्या

पुत्र वियोग कविता मुकुल काव्य से संकलित है। जिसमें कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान एक माँ की पीड़ा को बताते हुए कहती हैं कि, जिसे हमेशा अपने सीने से लगा कर रखा है। जिसकी चेहरे पर जरा भी उदासी को देख मैं रात-रात भर सोती नहीं थी। जिसके लिए मैं ना जाने कितने सारे देवी-देवताओं को प्रसाद चढ़ाया है, उसके आगे अपना शीश नवाया है।

वह मुझसे दूर हो गया मैं उसे मैंने उसे खो दिया, मैं अपने मन को कैसे मनाऊ। उसके याद में मेरा हृदय तड़प रहा है। मुझे एक पल को भी शांति नहीं है। मेरा बेटा एक बार मेरे पास आ जाए तो, मैं उसे प्यार से समझाती कि उससे, उसके भाई-बहन भूल सकते हैं, उसे उसके पिता भूला सकते हैं लेकिन जो माँ उसे 9 महीने अपने गर्भ में पाली है, जो रात दिन उसके साथ रहती है वह अपने मन को कैसे समझाए कि उसका बेटा मर चुका है। वह कभी लौटकर नहीं आएगा बहुत कठिन है उसको समझाना। putra viyog bhavarth


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