har jit bhavarth (saransh)
har jit bhavarth (saransh)
आधारित पैटर्न | बिहार बोर्ड, पटना |
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कक्षा | 12 वीं |
संकाय | कला (I.A.), वाणिज्य (I.Com) & विज्ञान (I.Sc) |
विषय | हिन्दी (100 Marks) |
किताब | दिगंत भाग 2 |
प्रकार | भावार्थ (सारांश) |
अध्याय | पद्य-12 | हार-जीत – अशोक वाजपेयी |
कीमत | नि: शुल्क |
लिखने का माध्यम | हिन्दी |
उपलब्ध | NRB HINDI ऐप पर उपलब्ध |
श्रेय (साभार) | रीतिका |
har jit bhavarth (saransh)
व्यख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गद्य कविता” “हार जीत”
व्यख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गद्य कविता” “हार जीत” से ली गई है। इसके कवि अशोक वाजपेयी जी हैं। यह कविता अशोक वाजपेयी जी की कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। इसमे कवि बताते है की हमारे देश की जो नेता है जो शासक वर्ग है वो भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते है। इसमें कवि कहते हैं कि, किसकी विजय हुई है। शासक की या नागरिकों की ये भी पाता नहीं है। हमारे देश के जो नेता है, वो कभी अपनी हार नहीं मानती है वो जनता को हमेशा अंधेरे मे ही रखती है।और किसी ने यह जानने की कोशिश ही नहीं की। har jit bhavarth (saransh)
व्यख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गद्य कविता” “हार जीत” से ली गई है। इसके कवि अशोक वाजपेयी जी हैं। यह कविता अशोक वाजपेयी जी की कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। इसमे कवि बताते है की हमारे देश की जो नेता है जो शासक वर्ग है वो भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते है। इसमें कवि कहते हैं कि, नागरिकों को यह भी नहीं पता कि कितने सैनिक युद्ध के लिए गए थे और कितने विजयी होकर वापस आ रहे हैं। मरने वालों की सूची अप्रकाशित है। अर्थात अभी ये भी नहीं पाता है की कितने सैनिक मारे गए है। har jit bhavarth (saransh)
व्यख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गद्य कविता” “हार जीत” से ली गई है। इसके कवि अशोक वाजपेयी जी हैं। यह कविता अशोक वाजपेयी जी की कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। इसमे कवि बताते है की हमारे देश की जो नेता है जो शासक वर्ग है वो भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते है। इसमें कवि कहते हैं कि, कवि कहते हैं कि, चमड़े के थैले में पानी रखने वाला रखने वाला सिर्फ वह बूढ़ा व्यक्ति है।
जो कह रहा है कि, हम जीते नहीं हैं। एक बार फिर हार गए हैं और गाने बजाने के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। कवि कहते हैं कि, अच्छा है कि, उस बूढ़े व्यक्ति पर बस सड़क सींचने भर की जिम्मेवारी है। सच बोलने या दर्ज करने की नहीं क्योंकि जिन पर यह जिम्मेवारी है, वह शासकों के गुलाम है। उनके साथ जीत कर लौट रहे हैं। जीत का जश्न मना रहे हैं।
व्यख्या
प्रस्तुत कविता “हार जीत” कवि “अशोक वाजपेयी” के कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। और यह एक गद्य कविता है। यह कविता शासक वर्ग, राजनीति, युद्ध, इतिहास और आम आदमी को लेकर आधुनिक प्रसंगों मे अनेक प्रश्न उठती है। कवि कहते है कि, नागरिकों पाता ही नहीं है की, उनका राजा, उनका शासक कौन है? और उनका शत्रु कौन है? उन्हे बताया गया है की उनकी विजय हुई है। ये भी स्पष्ट पाता नहीं है की किसकी विजय हुई है, नागरिकों की या शासकों की। नागरिकों को यह भी नहीं पता कि कितने सैनिक युद्ध के लिए गए थे, और कितने विजयी होकर वापस आ रहे हैं। मरने वालों की सूची अप्रकाशित है। अर्थात अभी ये भी नहीं पाता है की कितने सैनिक मारे गए है। har jit bhavarth (saransh)
चमड़े के थैले में पानी रखने वाला रखने वाला सिर्फ वह बूढ़ा व्यक्ति है। जो कह रहा है कि, हम जीते नहीं हैं। एक बार फिर हार गए हैं और गाने बजाने के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। कवि कहते हैं कि, अच्छा है कि, उस बूढ़े व्यक्ति पर बस सड़क सींचने भर की जिम्मेवारी है। सच बोलने या दर्ज करने की नहीं क्योंकि जिन पर यह जिम्मेवारी है, वह शासकों के गुलाम है। उनके साथ जीत कर लौट रहे हैं। जीत का जश्न मना रहे हैं।
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