दिगंत भाग 2

पद्य-5 | कवित्त भावार्थ (सारांश) – भूषण | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

विवरण

kavitt bhavarth (saransh)

आधारित पैटर्नबिहार बोर्ड, पटना
कक्षा12 वीं
संकायकला (I.A.), वाणिज्य (I.Com) & विज्ञान (I.Sc)
विषयहिन्दी (100 Marks)
किताबदिगंत भाग 2
प्रकारभावार्थ (सारांश)
अध्यायपद्य-5 | कवित्त – भूषण
कीमतनि: शुल्क
लिखने का माध्यमहिन्दी
उपलब्धNRB HINDI ऐप पर उपलब्ध
श्रेय (साभार)रीतिका
पद्य-5  | कवित्त भावार्थ (सारांश) – भूषण | कक्षा-12 वीं

कवित्त का प्रथम खण्ड

kavitt bhavarth (saransh)

इंद्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर,
रावन सदंभ पर रघुकुल राज है ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुऐ कहते है, की जैसे इंद्र का राज यमराज पर है, समुंद्र की अग्नि का राज पानी पर है, रावण और उसके अहंकार पर श्रीराम का राज है।

kavitt bhavarth (saransh)
पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाहु पर राम द्विजराज है ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुऐ कहते है, की जिस प्रकार से हवाओं का राज बादलों पर है, भगवान शिव का राज रति के पति (कामदेव) पर है। और जिस प्रकार राजा सहस्रबाहु पर भगवान परशुराम का राज है।


दावा द्रुम-दंड पर चीता मृग-झुंड पर,
भूषन बितुंड पर जैसे मृगराज है ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुऐ कहते है, की जैसे जंगलों की अग्नि का राज, जंगल कि पेड़ पौधे और वृक्ष की डालियों पर है। जिस प्रकार मृग झुंड पर चिता का राज है, जैसे हाथियों पर शेर का राज होता है।


तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,
यौं मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज है ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुऐ कहते है, की जिस प्रकार अंधेरे पर उजाले का राज होता है, कंस पर श्री कृष्ण का राज्य है। उसी प्रकार वीर शिवाजी का राज इन तुच्छ मलेच्छ पर है। kavitt bhavarth (saransh)


कवित्त का दूसरा खण्ड

kavitt bhavarth (saransh)

निकसत म्यान ते मयूखै, प्रलै-भानु कैसी,
फारै तम-तोम से गयंदन के जाल को ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते है की, जिस प्रकार सूर्य से प्रलयंकारी किरणे निकलती है, ठीक उसी प्रकार वीर छत्रसाल जी की तलवार म्यान से निकलती है। जिस प्रकार प्रकाश अंधकार के समूह को खत्म कर देती है, या उस पर विजय प्राप्त कर लेती है। उसी प्रकार आप की तलवार हाथियों के जाल अर्थात शत्रुओं को खत्म कर देती है। उन पर विजय प्राप्त करती है। kavitt bhavarth (saransh)


लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी,
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते है की, आप की तलवार ऐसे चलती है, जैसे नागिन अपने शत्रुओं के गले से लिपट जाती है, और अपने शत्रु को खत्म कर देती है। ऐसा लगता है, जैसे शिव जी को खुश करने के लिए आपकी तलवार मुंडो की माला चढ़ाती हो। kavitt bhavarth (saransh)


लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौं बखान करौं तेरी करवाल को ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते है की, हे महा बाहुबली प्यारे राजन छत्रसाल मैं कहां तक आपकी वीरता और प्रलयंकारी तलवार का बखान करूं।


प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को ।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते है की, हे राजन आपकी जो प्रलयंकारी तलवार है, वह शत्रु समूह के सिर को इस प्रकार काटती है, जिस प्रकार देवी का कलिका (काली) रूप ने रक्तबीज का संहार किया था, और ऐसा लगता है जैसे माँ काली को प्रसन्न करने के लिए कलेऊ दे रही हो।

सारांश

व्याख्या

भूषण जी ने अपने इस कवित्त में अपने प्रिय नायकों के बारे में लिखा है। भूषण जी, शिवाजी महाराज के शौर्य एवं शक्ति की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि, जैसे इंद्र का राज यमराज पर है। राम का राज रावण पर है। शिव का राज रति के पति पर है। परशुराम का राज सहस्रबाहु पर है। कृष्ण का राज कंस पर है। उजाले का राज अंधेरे पर है। उसी प्रकार वीर शिवाजी का राज इन तुच्छ मलेच्छो पर है।

भूषण जी छत्रसाल महाराज के शौर्य एवं वीरता की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि, छत्रसाल जी की तलवार जब म्यान से निकलती है, तो लगता है कि, सूर्य से प्रलयंकारी किरणे निकल रही हो। उनकी तलवार उनकी दुश्मनों के गर्दन पर नागिन की तरह लिपट जाती है। जब छत्रसाल जी की तलवार चलती है, तो ऐसा लगता है, जैसे उनकी तलवार शिव जी और काली माॅं को प्रसन्न करने के लिए मुंडो की माला तथा कलेऊ दे रही हो।


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