विवरण
Roj Saransh
आधारित पैटर्न | बिहार बोर्ड, पटना |
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कक्षा | 12 वीं |
संकाय | कला (I.A.), वाणिज्य (I.Com) & विज्ञान (I.Sc) |
विषय | हिन्दी (100 Marks) |
किताब | दिगंत भाग 2 |
प्रकार | सारांश |
अध्याय | गद्य-5 | रोज – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन (अज्ञेय) |
कीमत | नि: शुल्क |
लिखने का माध्यम | हिन्दी |
उपलब्ध | NRB HINDI ऐप पर उपलब्ध |
श्रेय (साभार) | रीतिका |
सारांश
Batchit Saransh
“रोज” कहानी “सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय” द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में लेखक 4 साल बाद मालती से मिलने गए है। मालती उनकी दूर के रिश्ते की बहन है, लेकिन वह एक दोस्त की तरह रहते थे, उनकी पढ़ाई एक साथ
2 साल पहले मालती की शादी हुई है। मालती के पति का नाम महेश्वर है। वह एक पहाड़ी गाँव में सरकारी डिस्पेंसरी के डॉक्टर हैं। वह सुबह 7:00 बजे सरकारी डिस्पेंसरी चले जाते हैं और डेढ़ 2:00 बजे लौटते हैं। दोपहर को छुट्टी रहती है, केवल शाम को एक-दो घंटे फिर चक्कर लगाने जाते हैं। डिस्पेंसरी के साथ छोटे अस्पताल के रोगियों को देखने और उन्हें जरूरी हिदायत देने का काम करते हैं। Roj Saransh
महेश्वर गैंग्रीन नामक बीमारी का इलाज करते हैं। गैंग्रीन काँटा चुभने पर ध्यान न देने के कारण हो जाता है। इसका इलाज मात्र एक ऑपरेशन है। गैंग्रीन के कारण एक मरीज का पैर काटने का भी उल्लेख इस कहानी में है।
Roj Saransh
पति के खाने के बाद ही मालती 3:00 बजे खाना खाती है। उसका जीवन एक व्यस्त गृहिणी का जीवन था। मालती के बेटे का नाम टिटी था। जो हर वक्त रोता ही रहता था। रात में मालती ने उसे पलंग की एक ओर सो ला दिया, पर वह खिसककर पलंग से नीचे जमीन पर गिर पड़ा। उसकी रोने की आवाज सुनकर मालती आई और लेखक की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा “इसे चोटे लगती ही रहती है रोज ही गिर पड़ता है”। लेखक ने मालती के घर में एक अजीब सी छाया देखी थी। मालती और उसके पति महेश्वर का जीवन एक ही चक्र में चल रहा था। एक अजीब सी शांति थी उनके घर में और जीवन में। रात के 11:00 बज रहे थे सब सो गए।
(रोज कहानी मैं गैंग्रीन नामक बीमारी का उल्लेख है। जो काँटा चुभने के कारण होती है। लोगों के ध्यान न देने के कारण एक छोटा सा काँटा चुभने से, गैंग्रीन जैसी बड़ी बीमारी हो जाती है, और इसका इलाज मात्र एक ऑपरेशन है।)
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