राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य-विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है ।
व्याख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के अधिनायक कविता से ली गई है। यह एक व्यंग कविता है। यह कविता कवि रघुवीर सहाय के संग्रह आत्महत्या के विरुद्ध से ली गई है। इन पंक्तियों में कहते हैं की, राष्ट्रगीत में भला कौन वह है, जिसे भारत का भाग्य विधाता बोला गया है। यह कौन है, जिसका गुणगान फटा सुथन्ना पहने हरचरना गाता है अर्थात हर आम आदमी गाता है। हर गरीब आदमी गाता है। adhinayak bhavarth (saransh)
मखमल टमटम बल्लम तुरही पगड़ी छत्र चँवर के साथ तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर जय-जय कौन कराता है ।
व्याख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के अधिनायक कविता से ली गई है। यह एक व्यंग कविता है।
यह कविता कवि रघुवीर सहाय के संग्रह आत्महत्या के विरुद्ध से ली गई है। इन पंक्तियों में कहते हैं की, पाता नहीं वह कौन अधिनायक है, जो छाता और चँवर से युक्त टमटम पर सवार होकर, मखमल के वस्त्र और पगड़ी पहनकर, बल्लम, तुरही के साथ रहता है। इस लोकतंत्र मे वह कौन है जो तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर अपनी जय-जय करता है, अपनी जयकार लगाता है। adhinayak bhavarth (saransh)
पूरब-पश्चिम से आते हैं नंगे-बूचे नरकंकाल सिंहासन पर बैठा, उनके तमगे कौन लगाता है ।
व्याख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के अधिनायक कविता से ली गई है। यह एक व्यंग कविता है। यह कविता कवि रघुवीर सहाय के संग्रह आत्महत्या के विरुद्ध से ली गई है। इन पंक्तियों में कवि कहते हैं की, पूरब-पश्चिम अर्थात सभी दिशाओ से, राष्ट्रीय त्योहारों पर गरीब जनता नंगे पाॅवो आती है। उन्हे देखकर ऐसा लगता है, जैसे वे नरकंकाल हो। सिंहासन पर बैठाकर उनके (गरीब जनता के) तमगे (मैडल) लगवाने वाला वह कौन है। adhinayak bhavarth (saransh)
कौन-कौन है वह जन-गण-मन- अधिनायक वह महाबली डरा हुआ मन बेमन जिसका बाजा रोज बजाता है ।
व्याख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के अधिनायक कविता से ली गई है। यह एक व्यंग कविता है। यह कविता कवि रघुवीर सहाय के संग्रह आत्महत्या के विरुद्ध से ली गई है। इन पंक्तियों में कहते हैं की, राष्ट्रीय गान मे वह “जन-गण-मन- अधिनायक” वह महाबली कौन है। जिसका बाजा रोज बजता है। डरी हुई जनता मन-बेमन जिसका गुणगान करती है। वह कौन है।
सारांश
व्याख्या
अधिनायक कविता रघुवीर सहाय के संग्रह आत्महत्या के विरुद्ध से ली गई है। यह एक व्यंग्यात्मक कविता है। जिसमें कवि कहते हैं की, राष्ट्रगात में भला कौन वह है, जिसे भारत का भाग्य विधाता बोला गया है। यह कौन है, जिसका गुणगान फटा सुथन्ना पहने हरचरना गाता है। अर्थात हर आम आदमी गाता है, हर गरीब आदमी गाता है।
पाता नहीं वह कौन अधिनायक है, जो छाता और चँवर से युक्त टमटम पर सवार होकर, मखमल के वस्त्र और पगड़ी पहनकर, बल्लम, तुरही के साथ आता है। इस लोकतंत्र मे वह कौन है, जो तोप छुड़ाकर (तोपों की सलामी लेता है),ढोल बजाकर अपनी जय-जय करता है, अपनी जयकार लगवाता है।
वह कौन है। जिसके लिए पूरब-पश्चिम अर्थात सभी दिशाओ से, राष्ट्रीय त्योहारों पर गरीब जनता नंगे पाॅवो आती है। उन्हे देखकर ऐसा लगता है, जैसे वे नरकंकाल हो। सिंहासन पर बैठाकर उनके (गरीब जनता के) तमगे (मैडल) लगवाने वाला वह कौन है। राष्ट्रीय गान मे वह “जन-गण-मन- अधिनायक” वह महाबली कौन है। जिसका बाजा रोज बजता है। डरी हुई जनता मन-बेमन जिसका गुणगान करती है। वह कौन है। adhinayak bhavarth (saransh)
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