chhppya bhavarth (saransh)

पद्य-4 | छप्पय भावार्थ (सारांश) – नाभादास | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

विवरण

chhppya bhavarth (saransh)

आधारित पैटर्नबिहार बोर्ड, पटना
कक्षा12 वीं
संकायकला (I.A.), वाणिज्य (I.Com) & विज्ञान (I.Sc)
विषयहिन्दी (100 Marks)
किताबदिगंत भाग 2
प्रकारभावार्थ (सारांश)
अध्यायपद्य-4 | छप्पय – नाभादास
कीमतनि: शुल्क
लिखने का माध्यमहिन्दी
उपलब्धNRB HINDI ऐप पर उपलब्ध
श्रेय (साभार)रीतिका
पद्य-4 | छप्पय भावार्थ (सारांश) – नाभादास | कक्षा-12 वीं

कबीर

chhppya bhavarth (saransh)

भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए ।
योग यज्ञ व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए ।।

व्याख्या

नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने अपने पहले छप्पय में कबीर जी के व्यक्तित्व और उनके गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि कबीर जी ने हृदय से किए गए भक्ति को धर्म माना है।

जिसमें सच्ची भावना हो, प्रेम हो बाकी सब अधर्म है, दिखावा है। उन्होंने योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन आदि को तुच्छ माना है। कबीर जी के अनुसार ये भक्ति को नहीं, दिखावे को दिखाती है। इनमें भक्ति का भाव नहीं होता है। chhppya bhavarth (saransh)


हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी।
पक्षपात नहिं बचन सबहिके हितकी भाषी ।।

व्याख्या

नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने अपने पहले छप्पय में कबीर जी के व्यक्तित्व और उनके गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि कबीर जी ने कभी किसी के साथ पक्षपात नहीं किया है। उनके वचन उनकी भाषा जो है, वह हमेशा सभी के हित में होती है। चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम इसका प्रमाण रमैनी और सबदी है जो मेरी बातों का साक्ष्य (सबूत) हैं।chhppya bhavarth (saransh)


आरूढ़ दशा है जगत पै, मुख देखी नाहीं भनी ।
कबीर कानि राखी नहीं, वर्णाश्रम षट दर्शनी ।

व्याख्या

नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने अपने पहले छप्पय में कबीर जी के व्यक्तित्व और उनके गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि कबीर ने कभी मुख देखी बात नहीं की है। संसार में किसी के साथ पक्षपात नहीं किया है, संसार के सभी लोग एक ही दशा में सवार होकर मुख देखी बात करते हैं। पर कबीर ने कभी ऐसा नहीं कहा है, कबीर ने कभी सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं किया है। चार वर्ण, चार आश्रम और छ: दर्शनी को भी उन्होंने कोई महत्व नहीं दिया है।


सूरदास

chhppya bhavarth (saransh)

उक्ति चौज अनुप्रास वर्ण अस्थिति अतिभारी ।
वचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी ।।

व्याख्या

नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने अपने दूसरे छप्पय में सूरदास जी के कविताओ और उनके गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि सूरदास के जो रचनाएं हैं वह सभी युक्ति, चमत्कार और अनुप्रास वर्ण के स्थिति से भरी हुई है। उनके जो वचन है, जो वाणी है, वह प्रेम से भरी हुई है। उनके जो अर्थ हैं, वह अद्भुत है और एक तुक को धारण किए हुए हैं।  chhppya bhavarth (saransh)


प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी ।
जन्म कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी ।।

व्याख्या

नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने अपने दूसरे छप्पय में सूरदास जी के कविताओ और उनके गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि सूरदास ने अपने दिव्य दृष्टि से अपने हृदय में हरी का एक प्रतिबिंब बनाया है और उनके लीला का वर्णन किया है उन्होंने श्री कृष्ण के जन्म कर्म गुण और रूप का वर्णन अपने वचनों द्वारा अपने कविताओं के रूप में प्रकाशित किया है।


विमल बुद्धि हो तासुकी, जो यह गुन श्रवननि धेरै ।
सूर कवित सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै ।

व्याख्या

नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने अपने दूसरे छप्पय में सूरदास जी के कविताओ और उनके गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि जो भी सूरदास की रचनाओं को उनके गुणों को अपने कानों से सुनता है। उनकी बुद्धि निर्मल हो जाती है। सूरदास की कविताओं को सुनकर कोई भी कभी उनकी बातों को गलत नहीं कह सकता सभी उनकी कविताओं पर अपनी हामी भरते हैं और अपना सिर हाँ में हिलाते हैं।  chhppya bhavarth (saransh)

सारांश 

व्याख्या

नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पर भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने अपने इस छप्पर में कबीर और सूरदास के व्यक्तित्व गुण और उनके कविताओं के सौंदर्य एवं प्रभावों के बारे में लिखा है। नाभादास जी, कबीर जी के बारे में कहते हैं कि, कबीर जी ने ह्रदय की भक्ति को धर्म माना है और योग्य, यज्ञ, व्रत, दान और भजन आदि को तुच्छ दिखाया है। कबीर जी ने किसी के साथ पक्षपात नहीं किया है, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, इसका प्रमाण रमैनी और सबदी है। जो मेरी बातों का साक्ष्य (सबूत) हैं।

नाभादास जी, सूरदास जी के बारे में कहते हैं कि, उनकी सभी रचनाएं युक्ति, चमत्कार और अनुप्रास की स्थिति से भरी होती है। उनके जो वचन होते हैं, वह प्रेम से भरी होती है। जो एक तुक को धारण किए हुए होते हैं। सूरदास जी की कविताएं कृष्ण लीला से जुड़ी हुई होती है। जिसमें उन्होंने हरि के जन्म, कर्म, गुण और रूप का वर्णन किए हैं। सूरदास की कविताओं को जो भी सुनता है, उसकी बुद्धि निर्मल हो जाती है। इनकी कविताओं को कोई गलत नहीं कह सकता, सभी इसमें अपनी हामी भरते हुए अपना सर हाँ में हिलाते हैं।


Quick Link

Chapter Pdf
यह अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन जल्द ही इसे publish किया जाएगा । बीच-बीच में वेबसाइट चेक करते रहें।
मुफ़्त
Online Test 
यह अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन जल्द ही इसे publish किया जाएगा । बीच-बीच में वेबसाइट चेक करते रहें।
मुफ़्त
सारांश का पीडीएफ़
यह अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन जल्द ही इसे publish किया जाएगा । बीच-बीच में वेबसाइट चेक करते रहें।
मुफ़्त

हिन्दी 100 मार्क्स सारांश

You may like this

har jit bhavarth (saransh)

पद्य-12 | हार-जीत भावार्थ (सारांश) – अशोक वाजपेयी | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

प्रस्तुत कविता “हार जीत” कवि “अशोक वाजपेयी” के कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली…
Continue Reading…
Batchit Saransh

गद्य-1 | बातचीत सारांश – बालकृष्ण भट्ट | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित बातचीत निबंध में वाक् शक्ति के महत्व को बताया गया है।…
Continue Reading…
Ardhnarishwar Saransh

गद्य-4 | अर्धनारीश्वर सारांश – रामधारी सिंह दिनकर जी | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

अर्धनारीश्वर निबंध रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखा गया है। अर्धनारीश्वर पाठ में स्त्री और…
Continue Reading…
Shiksha Subjective Q and A

गद्य-13 | शिक्षा (प्रश्न-उत्तर) – जे० कृष्णमूर्ति | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

शिक्षा का प्रश्न-उत्तर पढ़ने के लिए ऊपर क्लिक करें। Q 1. शिक्षा का क्या अर्थ है…
Continue Reading…

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!