पद्य-3 | पद (प्रश्न-उत्तर) – तुलसीदास | कक्षा-12 वीं
‘कबहुँक अंब अवसर पाई ।’ यहाँ ‘अंब’ संबोधन किसके लिए है ? इस संबोधन का मर्म स्पष्ट करें।
उत्तर
तुलसीदास जी ने ‘अंब’ कह कर माता सीता को संबोधित किया है। वे माता सीता से प्रार्थना करते है कि कभी अवसर पाकर श्री राम से मेरे बारे मे बात कीजिए की उनके दर्शन का भूखा हूँ। माँ सीता बहुत दयालु है इसलिए वे माता से ही प्रार्थना कर रहे है।
प्रथम पद में तुलसी ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है, लिखिए ।
उत्तर
प्रथम पद मे तुलसीदास ने स्वंम को दीन, अंगहीन, पापी इत्यादि बताते है। वे स्वंम को प्रभु श्री राम की दासी का दास भी बोलते है और अपना पेट भरने के लिए श्री राम का नाम लेते है। Tulsidas ke pad Subjective Question
अर्थ स्पष्ट करें (क) नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी दास कहाइ ।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के पद से ली गई है। इसके कवि तुलसीदास जी है। यह विनय पत्रिका से संकलित है। इस पंक्ति में कवि तुलसीदास माता सीता से विनती करते हैं कि मैं सभी प्रकार से दीन हूँ, गरीब हूँ, अंगहीन भी हूँ, दुर्बल हूँ, मलिन हूँ और बहुत बड़ा पापी भी हूँ। मैं इतना निकम्मा हूँ कि, मैं अपना पेट भरने के लिए श्री राम का नाम लेता हूँ, लेकिन मैं प्रभु की दासी का दास हूँ।
(ख) कलि कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँति कुसाजु । नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ।।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के पद से ली गई है। इसके कवि तुलसीदास जी है। यह विनय पत्रिका से संकलित है। इस पंक्ति में कवि तुलसीदास कहते है की, हे माता जब प्रभु की इच्छा यह जानने की हो की, उनका यह दास है कौन? तब आप मेरा नाम और मेरी दशा उन्हे बता दीजिएगा। कृपालु श्री राम के सुनते ही मेरी बिगड़ी बन जाएगी।
(ग) पेट भरि तुलसिहि जेंवाइय भगति-सुधा सुनाजु ।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग 2 के पद से ली गई है। इसके कवि तुलसीदास जी है। यह विनय पत्रिका से संकलित है। इस पंक्ति में कवि तुलसीदास कहते है की, मैं जन्म से ही भूखा हूँ, भिखारी हूँ, गरीब हूँ। आप ही मेरी भूख और मेरी गरीबी का उद्धार कर सकते हैं। मेरी भूख, मेरा पेट आपके नाम और आपकी भक्ति से ही भरेगा। मेरे लिए इससे अच्छा भोजन कोई भी नहीं है। मेरी सुधा आपकी भक्ति से ही शांत होगी, हे प्रभु आप मुझे अपनी भक्ति रूपी भोजन का एक निवाला दीजिए। जिससे मैं तृप्त होकर अपनी सुधा को शांत कर सकूं।
तुलसी सीता से कैसी सहायता माँगते हैं ?
उत्तर
तुलसीदास ने माता सीता से यह सहायता मांगते हैं कि माता सीता उनकी बातों को भगवान श्री राम के पास पहुँचा दे ताकि श्री राम उसे अपने योग्य और काबिल समझे इसके अलावा भवसागर को पार करने वाले श्री राम सभी अवगुणों को गुणों में बदलकर मुक्ति प्रदान कर दें।
तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते है ?
उत्तर
तुलसीदास का तात्पर्य यह है कि सीता जी सशक्त ढंग से (जोर देकर) उनकी बातों को भगवान श्रीराम के समक्ष रख सकेंगी। अतः तुलसीदास माता सीता द्वारा अपनी बातें श्री राम के समक्ष रखना ही उचित समझते हैं। तुलसीदास माँ सीता से भवसागर पार कराने वाले श्रीराम का गुणगान करते हुए मुक्ति-प्राप्ति में सहायता की याचना करते हैं।
राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का कारण क्या है ?
उत्तर
तुलसीदास कहते हैं कि मैं अत्यंत दीन, दुर्बल और पापी मनुष्य हूँ, फिर भी प्रभु का नाम लेकर अपना पेट भरता हूँ। तुलसी को विश्वास है कि उसके राम कृपालु हैं और दयानिधान हैं वे उसका समाधान कर देंगे। यही उनके भरोसे का कारण है।
दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय किस तरह दिया है, लिखिए ।
उत्तर
दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय दीन, दरिद्र और एक गरीब भिखारी के रूप दिया है। मैं जन्म से ही भूखा हूँ और उनकी कृपा का भोजन का एक निवाला चाहता हूँ ।Tulsidas ke pad Subjective Question
दोनों पदों में किस रस की व्यंजना हुई है ?
उत्तर
दोनों पदों में भक्ति रस की व्यंजना हुई है। Tulsidas ke pad Subjective Question
तुलसी के हृदय में किसका डर है ?
उत्तर
तुलसीदास के हृदय मे यही डर है की यदि उनके बारे मे माता सीता श्री राम से बात नही की तो वे इस भवसागर से मुक्ति नही प्राप्त कर पाएगे। वे पुनर्जन्म नही लेना चाहते है। यह तभी संमभव है जब सीता माता उनके बारे मे श्री राम से कुछ कहेंगी ।Tulsidas ke pad Subjective Question
राम स्वभाव से कैसे हैं, पठित पदों के आधार पर बताइए ।
उत्तर
राम स्वभाव से करुणामयी, दयालु और कृपालु हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा कृपयादृष्टि बनाये रखते है। उनका यश चारों ओर फैला हुआ है। वे भवसागर से मुक्ति दिलाने वाले मुक्ति दाता है। Tulsidas ke pad Subjective Question
तुलसी को किस वस्तु की भूख है?
उत्तर
तुलसी को भक्ति सुधा रूपी अमृत की भूख है। वे श्री राम की कृपा का भोजन का एक निवाला चाहता हैं। प्रभु अपने चरणों में ऐसी भक्ति दे दीजिए कि फिर कोई दूसरी कामना न रह जाए। Tulsidas ke pad Subjective Question
पठित पदों के आधार पर तुलसी की भक्ति-भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर
तुलसीदास जी एक संत थे इसलिए उनकी भक्ति-भावना सहज और सरल थी। दोनों पदों में तुलसी की दैन्यभाव की भक्ति का परिचय मिलता है। प्रथम पद में तुलसीदास माता सीता से निवेदन के माध्यम से भगवान श्री राम की शरण में अपनी मुक्ति चाहते है तथा स्वंम को उनकी दासी का दास कहते हैं। दूसरे पद में तुलसी ने अपने को भिखारी रूप में भगवान राम के सम्मुख प्रस्तुत किया है। वे कलियुग के कष्टों से पीड़ित हैं। उनका जीवन कष्टों से भरा है, पेट भरना मुश्किल है। इन दोनों पदों से तत्कालीन सामाजिक स्थिति का पता चलता है। जनता पीड़ित थी। उसे ईश्वर के सिवा किसी पर भरोसा नहीं था। अतः पठित पदों के द्वारा तुलसीदास भक्तहृदय की दीनता, असहायता और प्रभु की समर्थता का बोध कराते हैं।
‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु ।’ —यहाँ ‘और’ का क्या अर्थ है?
उत्तर
‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु ।’ —यहाँ ‘और’ का अर्थ है “बहुत कुछ”। तुलसीदास कहते है की मैं बहुत कुछ नही चाहता हुँ। आपकी दया, आपकी भक्ति का एक टुकरा, एक निवाला ही चाहत हूँ। Tulsidas ke pad Subjective Question
दूसरे पद में तुलसी ने ‘दीनता’ और ‘दरिद्रता’ दोनों का प्रयोग क्यों किया है ?
उत्तर
तुलसी दास कहते देखते हैं कि सभी ओर गरीबी और उद्यमहीनता (भुखमरी) का बोलबाला है। वे प्रभु को कहते हैं कि आपके अलावा हमारी दीनता और दरिद्रता को दूर कौन करेगा ? तुलसीदास ने जब इस कविता की रचना की थी तो उस समय देश में अकाल पड़ा था जिससे पूरा देश घोर गरीबी और भूखमरी का शिकार हो गया था। संभव है तुलसी ने दीनता और दरिद्रता शब्द का प्रयोग इसी कारणवश किया हो।