Juthan saransh

गद्य-10 | जूठन (सारांश) – ओमप्रकाश वाल्मीकि | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

विवरण

Juthan saransh

आधारित पैटर्नबिहार बोर्ड, पटना
कक्षा12 वीं
संकायकला (I.A.), वाणिज्य (I.Com) & विज्ञान (I.Sc)
विषयहिन्दी (100 Marks)
किताबदिगंत भाग 2
प्रकारसारांश
अध्यायगद्य-10 | जूठन – ओमप्रकाश वाल्मीकि
कीमतनि: शुल्क
लिखने का माध्यमहिन्दी
उपलब्धNRB HINDI ऐप पर उपलब्ध
श्रेय (साभार)रीतिका
गद्य-10 | जूठन (सारांश) – ओमप्रकाश वाल्मीकि | कक्षा-12 वीं

सारांश

Juthan saransh

ओमप्रकाश वाल्मीकि की “आत्मकथा” “जूठन” पिछड़ी-दलित एवं निम्न जाति के लोगों के दैनीय स्थिति को दर्शाती है। ओमप्रकाश वाल्मीकि चूहड़े जाति से थे। नीची जाति के होने के कारण उन्हें स्कूल में बैठने नहीं दिया जाता था। उनसे झाड़ू लगवाया गया।

हेडमास्टर (कलीराम) साहब ने शीशम के पेड़ की पत्तियों वाली झाड़ू बनवाया और पूरे स्कूल में उन्हें तीन दिनों तक झाड़ू

लगाना पड़ा। लेखक के पिता जी अचानक वहाँ आए और उन्हें झाड़ू लगाते हुए देखा वह गुस्सा कर हेडमास्टर जी से बात किए। उनके पिताजी उन्हें प्यार से मुंशीजी कहकर बुलाते थे और वह घर में सब के लाड़ले थे।

उनकी माता तागाओ (हिंदू-मुसलमान) के घर और मवेशियों के रहने के स्थान में साफ-सफाई का काम करती थी। घर के सभी लोग माॅं का हाथ बटाटे थे।‌ सालों भर काम करने के बाद भी उन्हें 12 से 13 किलो ही अनाज मिलता था।

शादी ब्याह के मौके पर जब मेहमान या बराती खाना खा लेते थे, तो उनकी जूठी प्लेट को चुहरे अपने घर लेकर जाते थे, और जूठन इकट्ठा कर धुप में सूखा देते थे। भोजन न रहने पर उसी का इस्तेमाल करते थे। दिन-रात काम करने की कीमत उन्हें जूठन मिलती थी। चुहड़ो को देने के लिए खासतौर पर खुची रोटी बनाई जाती थी। जो आटे में भूसी मिलाकर बनती थी।

Juthan saransh

त्यागियो के मरे पशुओं को उठाने का काम भी चुहडे़ जाति के लोगों करते थे। मरे हुए पशुओं के खाल 20 से 25 रूपया में मुजफ्फरनगर के चमरा बाजार में बिकती थी, मजदूरी देकर मुश्किल से 10 से 15 रूपया हाथ में आते थे।

लेखक कहते हैं कि उन दिनों वे नौवीं कक्षा में थे। एक रोज ब्रह्मदेव तगा का बैल खेत से लौटते समय रास्ते में गिर कर मर गया। घर पर कोई नहीं था माॅं, छोटी बहन माया और बड़ी भाभी देवी ही थी। बाकी सब रिश्तेदारी में गए थे। मैं स्कूल में था। खाल उतारने के लिए जब कोई नहीं मिला तो थक कर माॅं ने मुझे बुलाया। Juthan saransh

यह काम अकेले नहीं हो सकता था, इसलिए चाचा सोल्हड़ जो कि महाकामचोर थे, उनके साथ में भी गया उनकी मदद के लिए। मैंने यह काम पहले कभी नहीं किया था। मेरी हालत देखकर माॅं रो परी और बड़ी भाभी ने उस रोज माॅं से कहा, “इनसे यह न कराओ ……… भूखे रह लेंगे ….….. इन्हें इस गंदगी में ना घसीटो!” भाभी के यह शब्द मुझे आज भी याद है। मैं उस गंदगी से बाहर निकल गया हूॅं। लेकिन वह जिंदगी आज भी लाखों लोग जी रहे हैं।


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