गद्य-4 | अर्धनारीश्वर (सारांश) – रामधारी सिंह दिनकर जी | कक्षा-12 वीं
सारांश
Batchit Saransh
अर्धनारीश्वर निबंध रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखा गया है। अर्धनारीश्वर पाठ में स्त्री और पुरुष के गुणों को बताया गया है, तथा समाज द्वारा इन में किए जाने वाले भेदभाव को भी समझाया गया है। “अर्धनारीश्वर” शिव और पार्वती का कल्पित रूप है। जिसका आधा अंग पुरुष और आधा अंग नारी का होता है। इसके माध्यम से लेखक हमें यह समझाना चाहते हैं कि, नारी पुरुष से कम नहीं है और पुरुष में भी नारीत्व का गुण होता है।
इस पाठ में नर और नारी को लेकर समाज की मनोदशा का व्याख्यान किया गया है। जो नर और नारी को अलग-अलग देखते हैं। नर-नारी पूर्ण रूप से समान है। किसी एक का गुण दूसरे के लिए दोष का कारण नहीं है। समाज ने नारियों को इतना पराधीन कर दिया है कि, वह अपने अस्तित्व की अधिकारिणी नहीं रही।नारियों की पराधीनता तब आरंभ हुई जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया। जिसके चलते नारी अपने घर में और पुरुष बाहर रहने लगा। जिसके चलते नारी पूरी तरह से पुरुष पर निर्भर हो गई। जिस प्रकार लता एक वृक्ष पर निर्भर रहता है।
प्रगतिमार्ग वाले अपने जीवन में आनंद चाहते थे, इसलिए उन्होंने नारियों को अपनाया क्योंकि नारी आनंद की खान थी।निवृत्तिमार्गी ने उन्हें अलग धकेल दिया क्योंकि उनके लिए नारी किसी काम की चीज नहीं थी। लोग सन्यास लेने लगे।
Ardhnarishwar Saransh
बुद्ध और महावीर की कृपा से नारियों को भिक्षुणी होने का अधिकार दिया गया, किंतु यह भी उनके हाथ सुरक्षित न रह सका। यह कहा गया कि नारियों का भिक्षुणी होना व्यर्थ है क्योंकि मोक्ष नारी जीवन में नहीं मिल सकता। जब वे पुरुष होकर जन्मेंगी, सन्यास भी तभी ले सकेंगी और तभी उन्हें मुक्ति मिलेगी।
कुछ लेखकों और कवियों ने नारियों को नागिन, जादूगरनी, आहिरनी तक कहा है और ना जाने किन-किन शब्दों द्वारा उनकी निंदा की है। प्रेमचंद्र ने कहा है “पुरुष जब नारी के गुण लेता है, तब वह देवता बन जाता है किंतु नारी जब पुरुष के गुण लेती है, तो वह राक्षसी बन जाती है।” Ardhnarishwar Saransh
कवि के अनुसार यह सभी अर्धनारीश्वर का रूप नहीं है। नारी और नर एक ही द्रव की धनि 2 प्रतिमाएं हैं। गांधी जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में नारीत्व की साधना की थी। उनकी पोती ने उन पर जो पुस्तक लिखी है। उसका नाम है “बाबू मेरी माँ है”।
नारियों में दया, माया, सहिष्णुता और वीरता के गुण होते हैं। जो विनाश से बचाते हैं परंतु, नर मे कठोरता, कर्कशता अधिक और कोमलता कम दिखती है। पुरुष में कोमलता कि जो प्यास है। उसे नारी भली-भांति शांत कर देती हैं इसलिए पुरुष हमेशा कर्कशता बने रहते है। Ardhnarishwar Saransh
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