वे उत्सव मना रहे हैं। सारे शहर में रोशनी की जा रही है। उन्हें बताया गया है कि उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं। नागरिकों में से ज्यादातर को पता नहीं है कि किस युद्ध में उनकी सेना और शासक गए थे, युद्ध किस बात पर था । यह भी नहीं कि शत्रु कौन था पर वे विजयपर्व मनाने की तैयारी में व्यस्त हैं।
व्यख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गद्य कविता” “हार जीत”
से ली गई है। इसके कवि अशोक वाजपेयी जी हैं। यह कविता अशोक वाजपेयी जी की कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। इसमे कवि बताते है की हमारे देश की जो नेता है जो शासक वर्ग है वो भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते है। इसमें कवि कहते हैं कि, नागरिकों पता नहीं है कि, किस युद्ध में उनकी सेना और शासक (राजा) गए थे और युद्ध किस बात पर था। वो यह भी नहीं कि शत्रु कौन था। उन्हे बस इतना बताया गया है, इतना पाता है की, उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं। जिसका वे उत्सव यानि विजयपर्व मना रहे हैं और उसकी तैयारी मे व्यस्त है। सारे शहर में रोशनी की जा रही है। अर्थात सारे शहर मे इस बात को फैलाया जा रहा है।
उन्हें सिर्फ इतना पता है कि उनकी विजय हुई। उनकी से आशय क्या है यह भी स्पष्ट नहीं है : किसकी विजय हुई सेना की, कि शासक की, कि नागरिकों की ? किसी के पास पूछने का अवकाश नहीं है ।
व्यख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गद्य कविता” “हार जीत” से ली गई है। इसके कवि अशोक वाजपेयी जी हैं। यह कविता अशोक वाजपेयी जी की कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। इसमे कवि बताते है की हमारे देश की जो नेता है जो शासक वर्ग है वो भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते है। इसमें कवि कहते हैं कि, किसकी विजय हुई है।शासक की या नागरिकों की ये भी पाता नहीं है। हमारे देश के जो नेता है, वो कभी अपनी हार नहीं मानती है वो जनता को हमेशा अंधेरे मे ही रखती है।और किसी ने यह जानने की कोशिश ही नहीं की।har jit bhavarth (saransh)
नागरिकों को नहीं पता कि कितने सैनिक गए थे और कितने विजयी वापस आ रहे हैं। खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है।
व्यख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गद्य कविता” “हार जीत” से ली गई है। इसके कवि अशोक वाजपेयी जी हैं। यह कविता अशोक वाजपेयी जी की कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। इसमे कवि बताते है की हमारे देश की जो नेता है जो शासक वर्ग है वो भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते है। इसमें कवि कहते हैं कि, नागरिकों को यह भी नहीं पता कि कितने सैनिक युद्ध के लिए गए थे और कितने विजयी होकर वापस आ रहे हैं। मरने वालों की सूची अप्रकाशित है। अर्थात अभी ये भी नहीं पाता है की कितने सैनिक मारे गए है।har jit bhavarth (saransh)
सिर्फ एक बूढ़ा मशकवाला है जो सड़कों को सींचते हुए कह रहा है कि हम एक बार फिर हार गए हैं और गाजे-बाजे के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। उस पर कोई ध्यान नहीं देता है और अच्छा यह है कि उस पर सड़कें सींचने भर की जिम्मेवारी है, सच को दर्ज करने या बोलने की नहीं। जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे हैं ।
व्यख्या
प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गद्य कविता” “हार जीत” से ली गई है। इसके कवि अशोक वाजपेयी जी हैं। यह कविता अशोक वाजपेयी जी की कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। इसमे कवि बताते है की हमारे देश की जो नेता है जो शासक वर्ग है वो भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते है। इसमें कवि कहते हैं कि, कवि कहते हैं कि, चमड़े के थैले में पानी रखने वाला रखने वाला सिर्फवह बूढ़ा व्यक्ति है।
जो कह रहा है कि, हम जीते नहीं हैं। एक बार फिर हार गए हैं और गाने बजाने के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। कवि कहते हैं कि, अच्छा है कि, उस बूढ़े व्यक्ति पर बस सड़क सींचने भर की जिम्मेवारी है। सच बोलने या दर्ज करने की नहीं क्योंकि जिन पर यह जिम्मेवारी है, वह शासकों के गुलाम है। उनके साथ जीत कर लौट रहे हैं। जीत का जश्न मना रहे हैं।
सारांश
व्यख्या
प्रस्तुत कविता “हार जीत” कवि “अशोक वाजपेयी” के कविता संकलन “कहीं नहीं वहीं” से ली गई है। और यह एक गद्य कविता है। यह कविता शासक वर्ग, राजनीति, युद्ध, इतिहास और आम आदमी को लेकर आधुनिक प्रसंगों मे अनेक प्रश्न उठती है। कवि कहते है कि, नागरिकों पाता ही नहीं है की, उनका राजा, उनका शासक कौन है? और उनका शत्रु कौन है? उन्हे बताया गया है की उनकी विजय हुई है। ये भी स्पष्ट पाता नहीं है की किसकी विजय हुई है, नागरिकों की या शासकों की। नागरिकों को यह भी नहीं पता कि कितने सैनिक युद्ध के लिए गए थे, और कितने विजयी होकर वापस आ रहे हैं। मरने वालों की सूची अप्रकाशित है। अर्थात अभी ये भी नहीं पाता है की कितने सैनिक मारे गए है।har jit bhavarth (saransh)
चमड़े के थैले में पानी रखने वाला रखने वाला सिर्फ वह बूढ़ा व्यक्ति है। जो कह रहा है कि, हम जीते नहीं हैं। एक बार फिर हार गए हैं और गाने बजाने के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। कवि कहते हैं कि, अच्छा है कि, उस बूढ़े व्यक्ति पर बस सड़क सींचने भर की जिम्मेवारी है। सच बोलने या दर्ज करने की नहीं क्योंकि जिन पर यह जिम्मेवारी है, वह शासकों के गुलाम है। उनके साथ जीत कर लौट रहे हैं। जीत का जश्न मना रहे हैं।
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