ganw ka ghar (saransh)

पद्य-13 | गाँव का घर भावार्थ (सारांश) – ज्ञानेंद्रपति | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

विवरण 

ganw ka ghar (saransh)

आधारित पैटर्नबिहार बोर्ड, पटना
कक्षा12 वीं
संकायकला (I.A.), वाणिज्य (I.Com) & विज्ञान (I.Sc)
विषयहिन्दी (100 Marks)
किताबदिगंत भाग 2
प्रकारभावार्थ (सारांश)
अध्यायपद्य-13 | गाँव का घर
कीमतनि: शुल्क
लिखने का माध्यमहिन्दी
उपलब्धNRB HINDI ऐप पर उपलब्ध
श्रेय (साभार)रीतिका
पद्य-13 | गाँव का घर भावार्थ (सारांश) – ज्ञानेंद्रपति | कक्षा-12 वीं

प्रथम खण्ड

ganw ka ghar (saransh)

गाँव के घर के
अंतःपुर की वह चौखट
टिकुली साटने के लिए सहजन के पेड़ से छुड़ाई गई गोंद का गेह वह

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गाॅंव के घर” कविता से ली गई है। इसके कवि ज्ञानेंद्रोपति जी है। यह कविता उनके नवीनतम कविता संग्रह “संशयात्मा” से ली गई है। जिसमें गाॅंव की संस्कृति-सभ्यता मे हुए बदलाव को दिखाते हुए कवि कहते हैं कि, गाँव की घर का वह दहलीज, चौखट जहाँ से घर का बाहरी भाग शुरू होता है। सहजन का वह पेड़ जिससे छुड़ाई गई गोंद का गेह जिसका इस्तेमाल औरते अपनी बिंदी साटने के लिए करती थी। अब ऐसा कुछ भी नहीं है। ganw ka ghar (saransh)


वह सीमा
जिसके भीतर आने से पहले खाँस कर आना पड़ता था बुजुर्गों को
खड़ाऊँ खटकानी पड़ती थी खबरदार की
और प्रायः तो उसके उधर ही रुकना पड़ता था
एक अदृश्य पर्दे के पार से पुकारना पड़ता था
किसी को, बगैर नाम लिए
जिसकी तर्जनी की नोक धारण किए रहती थी सारे काम, सहज,

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गाॅंव के घर” कविता से ली गई है। इस के कवि ज्ञानेंद्रोपति जी है। यह कविता उनके नवीनतम कविता संग्रह “संशयात्मा” से ली गई है। जिसमें गाॅंव की संस्कृति-सभ्यता मे हुए बदलाव को दिखाते हुए कवि कहते हैं कि, घर की वह दहलीज वह सीमा जिसके अंदर आने से पहले घर के बुजुर्गो को खाँस कर या जंजीर बजकर संकेत देना होता था।

प्रायः उन्हे एक अदृश्य पर्दे (वह कोई पर्दा नहीं होता था, यह अदृश्य पर्दे उनकी संस्कार होती थी।) से ही घर के औरतों को बिना उनके नाम लिए बुलाना होता था। जिनकी तर्जनी उँगली सरे काम, सहज रूप से करती थी। अर्थात घर के बड़े लोगे ही घर के सारे फैसले लेते थे। अब सब कुछ बदल गया है।


शंख के चिह्न की तरह
गाँव के घर की
उस चौखट के बगल में
गेरू-लिपी भीत पर
दूध-डूबे अँगूठे के छापे
उठौना दूध लाने वाले बूढ़े ग्वाल दादा के-
हमारे बचपन के भाल पर दुग्ध-तिलक-
महीने के अंत में गिने जाते एक-एक कर

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गाॅंव के घर” कविता से ली गई है। इस के कवि ज्ञानेंद्रोपति जी है। यह कविता उनके नवीनतम कविता संग्रह “संशयात्मा” से ली गई है। जिसमें गाॅंव की संस्कृति-सभ्यता मे हुए बदलाव को दिखाते हुए कवि कहते हैं कि, गाँव की घर की वह चौखट जो शंख के चिन्ह की तरह थी। गाँव के घर का जो दरवाजा होता था वो शंख की आकृति का होता था। उस चौखट के बगल मे गेरू-लिपी भीत (गोबर और मिट्टी से बनी दीवाल) पर उठौन दूध लाने वाले बूढ़े ग्वाले दादा के अँगूठा का चिन्ह दूध डुबोकर दीवार पर लगाया जाता था। जिसका हिसाब महीने के अंत मे किया जाता था। हमारे बचपन मे ऐसा देखने को मिलता था। ganw ka ghar (saransh)


दूसरा खण्ड

ganw ka ghar (saransh)

गाँव का वह घर
अपना गाँव खो चुका है
पंचायती राज में जैसे खो गए पंच परमेश्वर
बिजली-बत्ती आ गई कब की, बनी रहने से अधिक गई रहनेवाली
अबके बिटौआ के दहेज में टी. वी. भी
लालटेनें हैं अब भी, दिन-भर आलों में कैलेंडरों से ढँकी-

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गाॅंव के घर” कविता से ली गई है। इस के कवि ज्ञानेंद्रोपति जी है। यह कविता उनके नवीनतम कविता संग्रह “संशयात्मा” से ली गई है। जिसमें गाॅंव की संस्कृति-सभ्यता मे हुए बदलाव को दिखाते हुए कवि कहते हैं कि, गाँव मे अब वो संस्कृत नहीं रही अब सब कुछ बदल चुका है। गाँव के पंचायत मे अब पंच परमेश्वर का कोई काम नहीं रहा, कोई ईमानदार नहीं है। बिजली-बत्ती आ गई है लेकीन वो रहती नहीं है अधिक तो कटी ही रहती है। बल्ब है पर उसमे रोशनी नहीं है। पहले जब बेटों की शादी होती थी तो, दहेज मे लालटेन मिलता था। अब टी. वी. ने लालटेन की जगह ले ली है। अभी भी लालटेन है घर मे लेकिन वो आलों (दिवाल मे ही बना हुआ जगह) मे कैलेंडरों से ढँकी हुई है।


रात उजाले से अधिक अँधेरा उगलतीं
अँधेरे में छोड़ दिए जाने के भाव से भरतीं
जबकि चकाचौंध रोशनी में मदमस्त आर्केस्ट्रा बज रहा है कहीं, बहुत दूर,
पट भिड़काए
कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी,
न रोशनी की आवाज

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गाॅंव के घर” कविता से ली गई है। इस के कवि ज्ञानेंद्रोपति जी है। यह कविता उनके नवीनतम कविता संग्रह “संशयात्मा” से ली गई है। जिसमें गाॅंव की संस्कृति-सभ्यता मे हुए बदलाव को दिखाते हुए कवि कहते हैं कि, रात मे अधिक अंधेरा होता था। रोशनी के लिए लालटेन मे तेल भरा कर उसे जलाया जाता है। जबकि दूर कहीं चकाचौंध रोशनी में मदमस्त आर्केस्ट्रा बज रहा है और यहाँ तक उसकी आवाज भी ठीक से नहीं आ रही है। यहाँ तो सही से उसकी रोशनी भी नहीं आ रही है। यहाँ न तो बिजली है और नहीं बिजली की कोई आशा। लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है।


होरी-चैती बिरहा-आल्हा गूँगे
लोकगीतों की जन्मभूमि में भटकता है एक शोकगीत अनगाया अनसुना
आकाश और अँधेरे को काटते
दस कोस दूर शहर से आने वाला सर्कस का प्रकाश बुलौआ
तो कब का मर चुका है
कि जैसे गिर गया हो गजदंतों को गँवाकर कोई हाथी
रेते गए उन दाँतों की जरा-सी धवल धूल पर
छीज रहे जंगल में,

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गाॅंव के घर” कविता से ली गई है। इस के कवि ज्ञानेंद्रोपति जी है। यह कविता उनके नवीनतम कविता संग्रह “संशयात्मा” से ली गई है। जिसमें गाॅंव की संस्कृति-सभ्यता मे हुए बदलाव को दिखाते हुए कवि कहते हैं कि, होरी-चैती, बिरहा-आल्हा ये लोकगीतों अब नहीं गए जाते है और नहीं सुनाई देते है। लोकगीतों की जन्मभूमि मे अब एक अनसुना, अनगाया शोकगीत सुनाई देता है। अर्थात सिर्फ शोरगुल ही सुनाई देती है।

दस कोस दूर जब शहर मे आता सर्कस था तो अंधेरे को काटते हुए सर्कस की उस प्रकाश को देखा गाँव के सभी लोग वहाँ जाते थे। अब उस सर्कस का कोई नामों निशन नहीं है। गजदंतों के लिए हाथियों को मारा जा रहा है। हाथियों के दाँत के लिए उनका शिकार कीया जा रहा है। उनके पैरो के निशान से उनका पीछा कर उनके दाँत को रेतकर निकाल लेते है। अपने गजदंतों को गँवाकर हाथी गिर कर मर जाते है। ganw ka ghar (saransh)


लीलने वाले मुँह खोले, शहर में बुलाते हैं बस
अदालतों और अस्पतालों के फैले-फैले भी रुँधते-गँधाते अमित्र परिसर
कि जिन बुलौओं से
गाँव के घर की रीढ़ झुरझुराती है।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के “गाॅंव के घर” कविता से ली गई है। इस के कवि ज्ञानेंद्रोपति जी है। यह कविता उनके नवीनतम कविता संग्रह “संशयात्मा” से ली गई है। जिसमें गाॅंव की संस्कृति-सभ्यता मे हुए बदलाव को दिखाते हुए कवि कहते हैं कि, अब जो शहर बुलावा आता है वो सर्कस देखने के लिए नहीं, अदालतों और अस्पतालों से आते है। इन सभी के कारण गाँव की जो रीढ़ झुरझुराती है। ganw ka ghar (saransh)


सारांश

व्याख्या

ज्ञानेंद्रपति द्वारा रचित कविता “गाॅंव का घर” उनके नवीनतम कविता संग्रह “संशयात्मा” से ली गई है। जिसमें गाॅंव की संस्कृति-सभ्यता मे हुए बदलाव को दिखाते हुए कवि कहते हैं कि, गाँव की घर का वह दहलीज, चौखट जहाँ से घर का बाहरी भाग शुरू होता है। सहजन का वह पेड़ जिससे छुड़ाई गई गोंद का गेह जिसका इस्तेमाल औरते अपनी बिंदी साटने के लिए करती थी। ganw ka ghar (saransh)

घर की वह दहलीज वह सीमा जिसके अंदर आने से पहले घर के बुजुर्गो को खाँस कर या जंजीर बजकर संकेत देना होता था। प्रायः उन्हे एक अदृश्य पर्दे (वह कोई पर्दा नहीं होता था, यह अदृश्य पर्दे उनकी संस्कार होती थी।) से ही घर के औरतों को बिना उनके नाम लिए बुलाना होता था। जिनकी तर्जनी उँगली सरे काम, सहज रूप से करती थी। अर्थात घर के बड़े लोगे ही घर के सारे फैसले लेते थे। अब सब कुछ बदल गया है।

गाँव की घर की वह चौखट जो शंख के चिन्ह की तरह थी। गाँव के घर का जो दरवाजा होता था वो शंख की आकृति का होता था। उस चौखट के बगल मे गेरू-लिपी भीत (गोबर और मिट्टी से बनी दीवाल) पर उठौन दूध लाने वाले बूढ़े ग्वाले दादा के अँगूठा का चिन्ह दूध डुबोकर दीवार पर लगाया जाता था। जिसका हिसाब महीने के अंत मे किया जाता था। हमारे बचपन मे ऐसा देखने को मिलता था। गाँव मे अब वो संस्कृत नहीं रही अब सब कुछ बदल चुका है। गाँव के पंचायत मे अब पंच परमेश्वर का कोई काम नहीं रहा, कोई ईमानदार नहीं है। बिजली-बत्ती आ गई है लेकीन वो रहती नहीं है अधिक तो कटी ही रहती है। बल्ब है पर उसमे रोशनी नहीं है। ganw ka ghar (saransh)

पहले जब बेटों की शादी होती थी तो, दहेज मे लालटेन मिलता था। अब टी. वी. ने लालटेन की जगह ले ली है। अभी भी लालटेन है घर मे लेकिन वो आलों (दिवाल मे ही बना हुआ जगह) मे कैलेंडरों से ढँकी हुई है। रात मे अधिक अंधेरा होता था। रोशनी के लिए लालटेन मे तेल भरा कर उसे जलाया जाता है। जबकि दूर कहीं चकाचौंध रोशनी में मदमस्त आर्केस्ट्रा बज रहा है और यहाँ तक उसकी आवाज भी ठीक से नहीं आ रही है। यहाँ तो सही से उसकी रोशनी भी नहीं आ रही है। यहाँ न तो बिजली है और नहीं बिजली की कोई आशा। लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है।

होरी-चैती, बिरहा-आल्हा ये लोकगीतों अब नहीं गए जाते है और नहीं सुनाई देते है। लोकगीतों की जन्मभूमि मे अब एक अनसुना, अनगाया शोकगीत सुनाई देता है। अर्थात सिर्फ शोरगुल ही सुनाई देती है। दस कोस दूर जब शहर मे आता सर्कस था तो अंधेरे को काटते हुए सर्कस की उस प्रकाश को देखा गाँव के सभी लोग वहाँ जाते थे। अब उस सर्कस का कोई नामों निशन नहीं है। गजदंतों के लिए हाथियों को मारा जा रहा है। हाथियों के दाँत के लिए उनका शिकार किया जा रहा है। उनके पैरो के निशान से उनका पीछा कर उनके दाँत को रेतकर निकाल लेते है। अपने गजदंतों को गँवाकर हाथी गिर कर मर जाते है। अब जो शहर बुलावा आता है। वो सर्कस देखने के लिए नहीं, अदालतों और अस्पतालों से आते है। इन सभी के कारण गाँव की जो रीढ़ झुरझुराती है। ganw ka ghar (saransh)


Quick Link

Chapter Pdf
यह अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन जल्द ही इसे publish किया जाएगा । बीच-बीच में वेबसाइट चेक करते रहें।
मुफ़्त
Online Test 
यह अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन जल्द ही इसे publish किया जाएगा । बीच-बीच में वेबसाइट चेक करते रहें।
मुफ़्त
सारांश का पीडीएफ़
यह अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन जल्द ही इसे publish किया जाएगा । बीच-बीच में वेबसाइट चेक करते रहें।
मुफ़्त

हिन्दी 100 मार्क्स सारांश

You may like this

usha bhavarth (saransh)

पद्य-8 | उषा भावार्थ (सारांश) – शमशेर बहादुर सिंह | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

प्रसिद्ध कविता उषा शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित है। जिसमें कवि ने भोर की सुंदरता का व्याख्यान करते हुए कहते हैं की, भोर का जो …
Continue Reading…
Pragit Aur Samaj Objective

गद्य-9 | प्रगीत और समाज Objective Q & A – नामवर सिंह | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

नामवर सिंह द्वारा रचित प्रगीत और समाज पाठ का Objective Q & A पढ़ने के लिए ऊपर क्लिक करें। 1. प्रगीत और समाज किसकी रचना है? (A) …
Continue Reading…
Haste Huye Mera Akelapan (Saransh)

गद्य-11 | हँसते हुए मेरा अकेलापन (सारांश) – मलयज | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

मलयज जी रानीखेत में लिखते हैं कि, “मिलिट्री की छावनी” के लिए पुरे सीजन इंधन और आगे आने वाले जाड़ों के लिए पेड़ को काटा …
Continue Reading…
Putra Viyog Subjective Question

पद्य-7 | पुत्र वियोग (प्रश्न-उत्तर) – सुभद्रा कुमारी चौहान | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

पुत्र वियोग का प्रश्न-उत्तर पढ़ने के लिए ऊपर क्लिक करें। Q1. कवियित्री का खिलौना क्या है? उत्तर- कवियित्री का खिलौना उनका पुत्र है। जिसकी मृत्यु हो चुकी …
Continue Reading…
Ardhnarishwar Objective Q & A

गद्य-4 | अर्धनारीश्वर Objective Q & A – रामधारी सिंह दिनकर जी | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा रचित अर्धनारीश्वर पाठ का Objective Q & A पढ़ने के लिए ऊपर क्लिक करें। 1. अर्धनारीश्वर किसकी रचना है? (A) रामधारी …
Continue Reading…
Hanste Hue Mera Aakelapan Subjective Q & A

गद्य-11 | हँसते हुए मेरा अकेलापन (प्रश्न-उत्तर) – मलयज | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स

हँसते हुए मेरा अकेलापन का प्रश्न-उत्तर पढ़ने के लिए ऊपर क्लिक करें। Q 1. डायरी क्या है ? उत्तर- डायरी किसी साहित्यकार या व्यक्ति द्वारा लिखित एक …
Continue Reading…

Leave a Comment

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!